वाहिकाओं में समस्या के कारण मस्तिष्काघात तीव्रता से मस्तिष्कीय दुष्क्रिया के रुप में विकसित हो रहे हैं जिसके अंतर्गत लक्षण 24 घंटे अथवा इससे अधिक तक बने रहते हैं और मृत्यु भी हो जाती है। मस्तिष्काघात के सामान्य लक्षणों में बेहोशी तथा कोशिकाओं का पक्षाघात शामिल है। 24घंटे से कम समय तक चलने वाली घटनाओं को ट्रांसिएन्ट एस्कैमिक अटैक (टी आई ए) कहते हैं। तंत्रिका संबंधी विशिष्ट लक्षणों और चिन्हों के साथ इसके आरम्भ होने का तरीका वाहिका संबंधी चोट की प्रकृति तथा जिस अंग पर चोट लगी है,उस पर निर्भर करता है।

तंत्रिका संबंधी विकृतियों में मस्तिष्काघात बारम्बारता तथा प्राथमिकता में पहले स्थान पर आता है, तथा वृद्धावस्था में होने वाली तंत्रिकाओं संबंधी समस्त बीमारियों में यह रोग पचास प्रतिशत लोगों में देखा जाता है। यह मृत्यु के पहले तीन कारणों में से एक है तथा इसका अग्रणी कारण बाद के जीवन में निशक्तता होता है। मस्तिष्काघात के आधे रोगी, पहले वर्ष तथा जीवित बचे एक तिहाई लोग ही बेहतर रोग मुक्ति प्राप्त कर पाते हैं।

मस्तिष्काघात सिन्ड्रोम का जन्म अनेक भिन्न भिन्न परिस्थितियों के कारण होता है जो कि मस्तिष्कीय वैस्कुलेचर तथा रक्त के प्रवाह को प्रभावित करती हैं। मस्तिष्काघात या तो संरोधक अथवा रक्तस्रावी हो सकता है। मस्तिष्काघात के सभी मामलों में 70 से 80% संरोधक अथवा इसकैमिक मस्तिष्काघात होते हैं तथा यह थ्राम्बासिस (रुकावट के अंग पर थक्का बन जाता है) अथवा एम्बोलिज्म (कहीं ओर से हट कर आए थक्के के कारण संरोधन) के कारण हो सकता है। थ्राम्बोटिक मस्तिष्काघात सभी किस्म के मस्तिष्काघात की किस्मों में सबसे अधिक सामान्य रुप से होता है तथा यह उच्च रक्त कॉलेस्ट्रोल (अथेरोसक्लेरोसिस) के कारण मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में संकुचन के कारण होता है। ह्दय रोग की दशामें आमतौर पर एम्बोलिक मस्तिष्काघात होते हैं। समस्त मस्तिष्काघातों में से रक्तस्रावी मस्तिष्काघात 20 से 30% मामलों में होता है तथा मस्तिष्क में रक्त वाहिका के फटने के कारण यह होता है।

मस्तिष्काघात से जुड़े जोखिम कारक

मस्तिष्काघात के लिए उच्च रक्त दाब एकमात्र सबसे बड़ा जोखिम कारक है। मस्तिष्काघात के लिए अन्य जोखिम कारकों में निम्निलिखित शामिल हैं :

बढ़ती उम्र, परिवार का इतिहास, उच्च कॉलेस्ट्रोल, आदर्श वजन से अधिक वजन, धूम्रपान, व्यायाम का अभाव, ह्दय रोग तथा मधुमेह।

निदान तथा उपचार

नैदानिक रुप से मस्तिष्काघात का निदान किया जाता है। परीक्षणों के द्वारा मस्तिष्काघात की रोग विकृति तथा रोग हेतु विज्ञान की पुष्टि होनी चाहिए ताकि उपचार योग्य ह्दयवाहिकाओं के जोखिम कारक का पता लगाया जा सके तथा मस्तिष्काघात की उपचार योग्य जटिलताओं की पहचान की जा सके, जिसके लिए रक्त के बेसलाइन परीक्षण, ई सी जी तथा वक्षस्थल का एक्सरे उपयोगी होते हैं। इमेजिंग परीक्षणों जैसे सी टी स्कैन तथा एम आर आई मस्तिष्काघात के रोग हेतु विज्ञान के निदान के लिए संवेदनशील परीक्षण हैं। टी आई ए के रोगियों में कैरोटिड अथेरोसक्लेरोसिस का पता लगाने के लिए कैरोटिड अल्ट्रासाउंड डॉप्लर अध्ययन बहुत उपयोगी होता है।

मस्तिष्काघात के प्रबन्धन में निम्नलिखित शामिल है:विकृति को न्यूनतम रखने के लिए चिकित्सीय इंटरवेंशन, गम्भीर जटिलताओँ की रोकथाम तथा उपचार, निशक्तता को न्यूनतम रखने के लिए पुनर्वास, तथा विकलांगता को न्यूनतम रखने के लिए अनुकूलन। मस्तिष्काघात की रोकथाम के लिए जोखिम कारकों में संशोधन अपेक्षित होता है:टी आई ए के इतिहास होने के कारण हाईपरटेंशन,धूम्रपान,कॉलेस्ट्रोल तथा औषध थेरेपी (जिससे थक्का बनने को रोका जाता है)।

पुनर्वास

रोगी तथा परिवार को शिक्षण,प्रशिक्षण तथा सलाह मश्विरे की आवश्यकता होती है। सामुदायिक तथा आवासीय पुनर्वास सेवाएं समुदाय में रहने वाले मस्तिष्काघात के रोगियों के लिए अनिवार्य होती हैं। मस्तिष्काघात रोगी पुनर्वास के आधारभूत सिद्धान्तों में विकृति और विकलांगता का पता लगाना आत्मनिर्भरता को अधिकतम तथा निर्भरता को न्यूनतम करना है। सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के लिए रोगी की शारीरिक तथा मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक समग्र कार्य प्रणाली अपेक्षित होती है।