60वर्षअथवा इससे अधिक के व्यक्तियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है तथा अक्सर इसी समूह के व्यक्तियों को कम पौष्टिक आहार लेने के कारण स्वास्थ्य संबंधी अनेक खतरों की सर्वाधिक संभावना होती है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अनेक वयोवृद्ध व्यक्ति अनिवार्य उर्जा और पौष्टिकता संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के आवश्यक आहार को उचित मात्रा में प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।
वर्तमान में विकासशील देखों में वृद्ध व्यक्तियों द्वारा सामाजिक और जनसांख्यकिकी परिवर्तनों के कारण कुपोषण की दोहरी समस्या का सामना किया जा रहा है जिससे न्यून पोष्टिकता का जन्म हो रहा है और इसी के साथ साथ उनके भोजन में वसा, पशुउत्पादों, परिष्कृत खाद्य पदार्थों तथा कम फाईबर युक्त भोज्य पदार्थों में वृद्धि हो रही है जिसके कारण मोटापे तथा टाईप 2 मधुमेह का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है।इसलिए,वयोवृद्ध व्यक्तियों में आहार संबंधी हस्तक्षेप विशेषरुप से चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि उस डेटा की कमी है जिसके आधार पर पौष्टिकता संबंधी आवश्यकताओं में किस आयु संबंधी परिवर्तन के लिए सही सही सिफारिशें आधारित की जाएं।
आयु में बढ़ोतरी के प्रभाव
जैसे जैसे लोगों की आयु बढ़ती है, स्वास्थकर पौष्टिकता संबंधी आदतों के लिए अकसर बहुआयामी हस्तक्षेप कार्यप्रणाली की आवश्यकता पड़ती है ताकि उन विस्तृत कारकों जिनमें शारीरिक, मनोसामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन शामिल हैं, तथा जिनके कारण कम मात्रा में पोष्टिक आहार का सेवन किया जाता है, का हल खोजा जा सके।
शारीरिक परिवर्तन
उम्र के बढ़ने के साथ साथ शरीर धीमी गति से कार्य करने लगता है, क्षतिग्रस्त हो चुकी कोशिकाओं को प्रतिस्थापित करने की इसकी क्षमता कम हो जाती है। चयापचय दर में गिरावट आ जाती है तथा जीवन काल के दौरान इसमें तीस प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। इसके परिणामस्वरुप कैलोरी संबंधी आवश्यकताओं में कमी होती है जिससे संतुलित आहार ग्रहण करने और उर्जा आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाए रखने की वृद्ध व्यक्ति की क्षमता में परिवर्तनों से यह और भी अधिक जटिल हो सकती है। कैलोरी की कम आवश्यकता के बावजूद, अनेक वयोवृद्ध व्यक्तियों को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी प्राप्त करने में कठिनाई होती है जिसके कारण अंतत वह जीर्ण थकान, अवसाद तथा कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से पीड़ित हो जाते हैं। जैसे जैसे हमारी आयु बढ़ती है, हमारे शरीर की संरचना में लीन टिश्यू मॉस (यहां तक की 25%) में कमी तथा शरीर की वसा में वृद्धि के साथ परिवर्तन होता है। इस प्रकार के परिवर्तनों की गति और भी अधिक तेज हो सकती है क्योंकि वयोवृद्ध व्यक्ति आहार संबंधी प्रोटीनों को कम कार्य कुशलता से उपयोग में लाते हैं तथा उन्हें अपनी लीन टिश्यू मॉस को बनाए रखने के लिए अपने भोजन में संस्तुत उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन से अधिक मात्रा में प्रोटीन की आवश्यकता हो सकती है। हड्डियों के घनत्व में भी कमी आती है तथा आंखों से भी नजदीकी वस्तुओं पर उतना अधिक फोकस नहीं किया जा पाता है जितना पहले किया जा सकता था तथा कुछ व्यक्तियों में मोतियाबिन्द विकसित हो जाता है, दांतों आदि में खराबी एक सामान्य बात होती है तथा श्रवण, स्वाद तथा सूंघने से संबंधित परेशानियां कम गम्भीर होती हैं। पाचन प्रभावित हो जाता है क्योंकि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा एन्जाइमों के स्रवण में कमी हो जाती है। इसके परिणाम स्वरुप इन्ट्रिन्सिक फैक्टर सिन्थेसिस में गिरावट आती है, जिससे विटामिन बी-12 में कमी आती है। आंतों का बल कम हो जाता है और इसके परिणामस्वरुप कब्ज तथा अनेक मामलों में अतिसार हो सकता है।
मनोवैज्ञानिक परिवर्तन
आयु के साथ भावनाओं में कमी नहीं आती है। वस्तुत, आयु के बढ़ने के साथ साथ मनोवैज्ञानिक समस्याओं में वृद्धि हो सकती है जिसके परिणामस्वरुप अवसाद तथा कम भूख लगती है। वृद्ध व्यक्ति अक्सर यह शिकायत करते हैं कि उन्हें एक व्यक्ति के लिए खाना पकाना अथवा घर पर अथवा रेस्तरां में अकेले खाना ग्रहण करना अच्छा नहीं लगता है। अध्ययनों से यह पता चला है कि अकेले रहने वाले वयोवृद्ध व्यक्ति अपने पति/पत्नी के साथ रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में खराब आहार के विकल्प नहीं चुनते हैं बल्कि वह कम कैलोरी का सेवन करते हैं। अपने प्रति स्वाभिमान की कमी से भी खाने के प्रति कम रुचि विकसित हो सकती है।
आर्थिक परिवर्तन
किसी व्यक्ति द्वारा अपने सेवा निवृत्ति उपरांत जीवन के लिए सावधानी पूर्वक योजना तैयार नहीं किए जाने पर, व्यक्ति मंहगे खाद्य पदार्थ जैसे दूध तथा इसके उत्पाद, मांस, फल, सूखे मेवे तथा बादाम आदि जो कि कैल्शियम, प्रोटीन, जिंक, आयरन, बी-बिटामिन्स तथा महत्वपूर्ण एन्टी-आक्सीडेन्ट के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं, का सेवन नहीं किया जाता है जिसके कारण विशिष्ट रुप से उनके द्वारा पौष्टिक आहार के सेवन में कमी आती है।
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