डायबिटीज मैलीटस एक ऐसा रोग है जिसमें हमारा शरीर खाने में शर्करा की उचित सम्भलाई करने में असमर्थ होता है तथा सामान्य गतिविधियों के लिए इसे उर्जा में परिवर्तित करने में असमर्थ होता है।
इस संचय के पीछे दो कारण होते हैं पहला शरीर में पर्याप्त इन्सुलिन (अग्नाशय से स्रावित किए जाने वाला हारमोन जो रक्त में ग्लूकोज़ स्तर को विनियमित करता है) नहीं है अथवा शरीर के ऊतकों पर इन्सुलिन पूर्णतया प्रभावी नहीं होता है।
दो मुख्य प्रकार का मधुमेह होता है, टाईप 1 अथवा इन्सुलिन-निर्भरता मधुमेह, जो कि रोग का अधिक गम्भीर स्वरुप है, तथा सामान्य रुप से इसकी शुरुआत बचपन अथवा किशोरावस्था से होती है। इन्सुलिन तथा नियंत्रित आहार के साथ जीवन भर इन्सुलिन के साथ उपचार अपेक्षित होता है।
हाल के अनुसंधान से पता चला है कि रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा सामान्य रुप से आयु के साथ बढ़ सकती है।
मधुमेह से पीड़ित रोगी अपने आप को थका हुआ महसूस करते हैं तथा उनमें अधिक प्यास, बार बार पेशाब जाना, अकारण वजन में गिरावट, थकान, धुंधली दृष्टि, त्वचा संबंधी संक्रमण अथवा खुजली, तथा चोट और जख्म आदि का धीरे धीरे भरना जैसे लक्षण हो सकते हैं। इन समस्याओं की शीघ्रतापूर्वक सूचना डाक्टर को दी जानी चाहिए, जो मूत्र में शर्करा का पता लगा सकता है अथवा रक्त में उसकी अधिक मात्रा की जांच कर सकता है। कभी कभी इनमें से कोई भी लक्षण नहीं दिखाई देता तथा रोग का पता अन्य असम्बंधित समस्याओं की जांच जैसे शल्य चिकित्सा आदि से पता चलता है।
रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर जो या बहुत अधिक है अथवा बहुत कम है, उससे गम्भीर चिकित्सीय आपातस्थितियां पैदा हो सकती हैं। मधुमेह के रोगी जब उनका रक्त शर्करा स्तर बहुत अधिक या बहुत कम हो जाता है तो वह अचेतावस्था में जा सकते हैं। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को इन दो स्थितियों से संबंधित चेतावनी लक्षणों की तथा ऐसा होने पर क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी होनी चाहिए।
रक्त ग्लूकोज़ स्तरों को कम करने के लिए आहार नियोजन अति महत्वपूर्ण होता है। आहार की योजना तैयार करते समय, डाक्टर द्वारा रोगी के वजन तथा प्रतिदिन की जाने वाली शारीरिक गतिविधियों पर विचार किया जाता है। आदर्श वजन से अधिक वजन के रोगियों में वजन को कम करने की योजना अनिवार्य है जिससे उचित रक्त ग्लूकोज नियंत्रण को प्राप्त किया जा सके।
जब आहार और व्यायाम से रक्त शर्करा स्तरों का बेहतर नियंत्रण प्राप्त नहीं किया जा सकता तब औषधियों (इन्सुलिन इंजेक्शन अथवा मुंह से ली जाने वाली गोलियां) की आवश्यकता पड़ती है। कभी कभी कोई रोगी जो बिना औषधियों के ठीक रहता है उसके लिए अल्पकालिक आधार पर गम्भीर बीमारी अथवा संक्रमण की स्थिति में इन्सुलिन इंजेक्शन अथवा गोलियों की आवश्यकता हो सकती है।
मधुमेह रोगियों में संक्रमण का प्रतिरोध करने की क्षमता दूसरों की तुलना में कम होती है। उन्हे अपनी त्वचा को चोट आदि से बचाना चाहिए, इसे साफ रखना चाहिए तथा शुष्कता से बचने के लिए त्वचा साफ्टनर्स का प्रयोग करना चाहिए और छोटे छोटे जख्मों और खरोंचों से बचाव करना चाहिए।
बढ़ती उम्र में अंधता का मधमेह एक सामान्य कारण है तथा इससे किसी नेत्र विशेषज्ञ द्वारा वार्षिक जांच कराए जाने से बचा जा सकता है।
जब हम चीनी तथा अनाज का सेवन करते हैं,तो शरीर इसे ग्लूकोज़ में परिवर्तित कर देता है। तत्काल आवश्यकता के लिए ग्लूकोज़ रक्तधारा में परिसंचरण करता है अथवा भविष्य में प्रयोग के लिए यह ग्लूकोजेन के रुप में लीवर में स्टोर हो जाता है। मधुमेह में, रक्त में ग्लूकोज़ के लिए विनियामक व्यवस्था अकार्यकुशल होती है। परिणामस्वरुप ग्लूकोज़ खतरनाक स्तर तक संचित होता जाता है, जिससे कष्टकारी लक्षण पैदा होते हैं और साथ ही महत्वपूर्ण अंग नष्ट होने शुरु हो जाते हैं।
मधुमेह वंशानुगत आधार पर होने वाला रोग है लेकिन वंशानुगत आधार के अलावा अन्य कारक भी इसके लिए उतरदायी होते है। उदाहरण के लिए सुग्राह्य वयोवृद्ध व्यक्ति जिनका निर्धारित आदर्श वजन से अधिक वजन होता है, उनको मधुमेह हो सकती है।
लेकिन, सर्वसामान्य किस्म का मधुमेह तथा जो कि वृद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता है, वह टाईप 2 अथवा गैर इन्सुलिन निर्भर मधुमेह होता है।
टाईप 2 से पीड़ित अधिकांश व्यक्तियों को इन्सुलिन के इंजेक्शनों की आवश्यकता नहीं होती है। वह अपने वजन को नियंत्रित करके, व्यायाम करके, तथा समुचित आहार सेवन करके और मधुमेह रोधी गोलियों का सेवन करके आमतौर पर अपने मधुमेह के स्तर को लगभग सामान्य स्तर पर रख सकते हैं।
मधुमेह से मस्तिष्काघात, अंधता, ह्दय रोग, गुर्दों द्वारा कार्य करना बन्द करना, गैंगरीन तथा शिरा क्षति जैसी अनेक दीर्घकालिक जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि रक्त में ग्लूकोज़ के उचित नियंत्रण से इन समस्याओं को होने से रोका जा सकता है अथवा उन्हे कम किया जा सकता है।
मधुमेह को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसे नियंत्रित रखा जा सकता है। बेहतर नियत्रंण के अंतर्गत आहार, व्यायाम तथा यदि आवश्यक हुआ तो इन्सुलिन अथवा गोलियां आदि का संतुलित मिश्रण शामिल होता है।
व्यायाम भी आवश्यक है क्योंकि इससे शरीर में अधिशेष ग्लूकोज़ को उर्जा के रुप में बर्न करने में सहायता प्राप्त होती है। डाक्टर द्वारा एक ऐसे व्यायाम कार्यक्रम को तैयार करने में सहायता की जा सकती है जो कि रोगी के सामान्य स्वास्थ्य के अनुसार आहार और दवा की आवश्यकता को संतुलित करता है। निरन्तरता बनाए रखना बहुत ही आवश्यक होता है अर्थात प्रतिदिन समान स्तर का व्यायाम करना आवश्यक है।
मधुमेह के रोगियों के लिए पैरों की उचित देखभाल अनिवार्य है, चूंकि इस रोग के कारण पैरों को रक्त की आपूर्ति बन्द हो सकती है तथा संवेदना में कमी हो सकती है। मधुमेह के रोगियों को प्रतिदिन अपने पैरों की जांच किसी प्रकार के घाव, जख्म, त्वचा का फटना, संक्रमण,अथवा किसी प्रकार के घट्टे आदि का विकास होने को देखने के लिए करनी चाहिए, तथा इसकी जानकारी तत्काल पारिवारिक चिकित्सक को दी जानी चाहिए।