दण्ड़ प्रक्रिया संहिता, 1973
धारा 125(1)(2) ऐसा कोई व्यक्ति जो कि अपने माता या पिता की देखभाल करने के लिए पर्याप्त साधन रखता है तथा ऐसे पिता या माता जो कि अपनी देखभाल स्वयं करने में असमर्थ हैं, के लिए यदि उपेक्षा या इंकार का साक्ष्य मिलने पर उसे प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश दिए जाने पर 500/- रुपये से अनधिक का अनिवार्य रुप से मासिक भत्ता प्रदान करना होगा। यह सभी पर लागू होता है चाहे उनका धर्म, विश्वास तथा धार्मिक धारणाएं कोई भी क्यों न हों तथा इनमे दत्तक अभिभावक भी शामिल हैं। इस धारा का उच्चतम न्यायालय ने अपने अधिनिर्णय में निर्वचन किया है जिसके अनुसार बेटियां तथा बेटे, विवाहित अथवा अविवाहित, अपने अभिभावकों के अभिरक्षण के लिए समान रुप से उत्तरदायी हैं।
हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956
इस अधिनियम की धारा 20(1) के अनुसार, प्रत्येक हिन्दू बेटे तथा बेटी का यह दायित्व है कि वह अपने बुजुर्ग तथा निशक्त माता पिता का भरण पोषण करें यदि वह अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं तो वह भरणपोषण प्राप्त करने के हकदार हैं। पक्षों की स्तर तथा स्थिति (या दर्जे) को देखते हुए राशि का निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जाता है।
हिमाचल प्रदेश अभिभावक तथा आश्रितों का भरणपोषण अधिनियम 2001
हिमाचल प्रदेश अभिभावक तथा आश्रितों का भरणपोषण अधिनियम 2001 (8 सितम्बर, 2001 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किए गए रुप में) के अंतर्गत बच्चों के लिए अपने वृद्ध अभिभावकों तथा अन्य आश्रितों के लिए देखभाल करना अनिवार्य बनाया गया है अथवा उन्हें भरणपोषण भत्ता देना अनिवार्य किया गया है। भरणपोषण की राशि परिवार की स्थिति के अनुरुप होगी।
राज्य सरकार ने इस विधान के माध्यम से न्यायिक कार्रवाई से बचाने का प्रयास किया है। शिकायककर्ता सब डिविजनल मजिस्ट्रेट अथवा किसी अन्य अपीलीय प्राधिकरण के पास जाकर अपनी शिकायतों का निपटान करने का अनुरोध कर सकता है। महाराष्ट्र सरकार ने भी इसी तर्ज पर एक विधेयक को पारित किया है।
अभिभावकों के उत्पीड़न के प्रति अधिनिर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 20 जनवरी, 2004 को सत्तर वर्षीय माता पिता, जिन्होने न्यायालय में सहायता के लिए आवेदन दिया था, के बेटे तथा बहू को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वृद्ध माता पिता को उत्पीड़ित न किया जाए। माता पिता ने यह आरोप लगाया था कि उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। “इस बात को सुनिश्चित करें कि वयोवृद्ध दम्पत्ति की आवश्यकताओं को उचित रुप से पूरा किया जाता है तथा उनके लिए किसी प्रकार की कोई कठिनाई पैदा नहीं की जाती है।”
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स्रोत: टाईम्स ऑफ इंडिया दिनांक 21-01-04